कहीं न कहीं कुछ न कुछ तो यहाँ कमी है
कभी हम में तो कभी अपनों में कमी है
हमारी बात जब न समझ पाया कोई भी
न जाने क्यों लगा हमारी बात में कमी है
पलट कर जो देखना चाहा तो ये भी लगा
कहीं न कहीं ज़ज्बात में भी कुछ कमी है
समग्र में सोचा तो होने लगा ये एहसास
कहीं न कहीं हर ओर ही तो यहाँ कमी है
नतीजन ये समझ में आ गया है हमारी
सुधार का क्रम भी तो आखिरकार कमी है
No comments:
Post a Comment