Wednesday, February 6, 2013

तुम

मेरी ही सोच मेरी धड़कन बन कर तुम
मेरे जिस्मो ज़ेहन में तुम यूँ छा जाना
तनहाइयों में मेरा साथी बन कर तुम
हो कहीं भी मेरी नस नस में समा जाना
ऊँचे पहाड़ों की वादी में ज्यों गुनगुनाते
कोई मीठा सा गीत सी तुम आ जाना
बेक़रारी के सताये पलों में भी देख मुझे
किसी रूमानी ग़ज़ल सी तुम आ जाना
गर्मियों से झुलसते हुए लम्हों में कभी
भीगे हुए मौसम की तरह तुम आ जाना
नींद में तुम करवटें बदलते देख मुझे
एक हसीं ख्वाब सी तुम बस आ जाना
मुझे सोता भी समझ मेरे ख्यालों में
एक हकीकत की तरह तुम बसा करना

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