Sunday, August 4, 2013

तुम्हारा साथ

जब से महके
बागबाँ में फ़ूल
ये मन भी हुआ
गुलो गुलज़ार
तब से चाहा
तुम्हारा साथ
ये मन हुआ
ख़ुद से बेगाना
अब न रहा
मौसम बहार का
न ही रहा
तुम्हारा साथ
ये मन हुआ
बस बेज़ार
फिर भी
यही है तमन्ना
मौसम बदले
फिर गुल खिलें
और फिर से हो
तुम्हारा साथ!

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