तुम्हें नहीं मालूम इस मासूमियत से
कितने रंग बनते बिगड़ते थे चेहरों में
मेरे सभी अल्फ़ाज़ तक थम से गए थे
ऐसा कुछ ठहराव था तुम्हारी बातों में
मेरी नज़रें तो बस अटक सी ही गई थीं
ऐसी गहराई समाई तुम्हारी आँखों में
देखते रहने का आभास तो होगा तुम्हें
हाँ अनदेखा करना तुम्हारी फितरत में
बस भुलाये से भी भूलता नहीं है अब
न जाने क्या बात थी तुम्हारे चेहरे में
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