Friday, August 9, 2013

ज़ीस्त की महफ़िल


है देश यहाँ है देश उधर भी
ये परिवेश है जाना पहचाना
कौन न जायेगा उस पार कहे
सवाल है बिलकुल बचकाना

ये भी सच और वो भी सच है
दुनियाँ ये है बस आना जाना
दो दिन का है सब इधर उधर
कहीं हँसना यूँ हो चाहे हो रोना

यूँ ज़ीस्त के रंगों की महफ़िल
बस हँस लो जीना हो या मरना
मर के जी लो हँस के मर लो
है कौन किसे है किसने पहचाना

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