Friday, August 23, 2013

बादलों की गरज़

तुम्हें शौक़ होगा तो है
बादलों की गरज़ सुनने का
तेज़ बारिश के शोर का
उफनती हुई नदियों की
लहरों के बहाव के नज़ारों का
मेरा तज़ुर्बा अलग है तुम से
मुझे डर लगता है
पहाड़ों की तबाही का
पानी के तेज़ बहाव का
पानी के सैलाब का
जो सब कुछ बहा ले जाता है
ज़िन्दगी भर का सहेज़ा
हर साल हर बार
कहीं न कहीं
किसी न किसी का

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