Saturday, August 17, 2013

देवभूमि के सरमाये

कुछ भी नया नहीं है
हर साल झेलते आये
बस ये आपदा बड़ी थी
तुम खुद भी देख पाए

हर हाल अपने दम पर
सदियों से जीते आये
एक आह तक नहीं की
तुमको बता न पाए

नदियाँ हों या शिखर हों
हम बस पूजते थे आये
हर ओर मंदिरों में घर में
पूजन हैं करते आये

हम देखते रह गए थे
तुम कुदरत से खेल आये
कुछ तुम तो साथ हम भी
मंज़र समझ न पाये

हम उनके दुःख में शामिल
मेहमाँ जो बन के आये
अब भी भरोसे खुद के
पर तुमको संभाल लाये

हम आपदा के बीच में भी
जीवन के गीत गाते आये
अब तुम भी संजीदगी से
दुःख दर्द समझ हो पाये

फिर आते रहना मिलने
अपने भी हैं यहाँ पराये
आंसू छिपे रहेंगे तब भी
देखो इनकी खुशियों के साये

हिम्मत भी देख लेना
हम फिर संभाल लाये
साझा हैं हमवतन हैं
ये देवभूमि के सरमाये

1 comment:

अनुपमा पाठक said...

हम आपदा के बीच में भी
जीवन के गीत गाते आये
***
यह आस्था ही श्मशान से पुनः ज़िन्दगी की ओर ले आती है!