कुछ भी नया नहीं है
हर साल झेलते आये
बस ये आपदा बड़ी थी
तुम खुद भी देख पाए
हर हाल अपने दम पर
सदियों से जीते आये
एक आह तक नहीं की
तुमको बता न पाए
नदियाँ हों या शिखर हों
हम बस पूजते थे आये
हर ओर मंदिरों में घर में
पूजन हैं करते आये
हम देखते रह गए थे
तुम कुदरत से खेल आये
कुछ तुम तो साथ हम भी
मंज़र समझ न पाये
हम उनके दुःख में शामिल
मेहमाँ जो बन के आये
अब भी भरोसे खुद के
पर तुमको संभाल लाये
हम आपदा के बीच में भी
जीवन के गीत गाते आये
अब तुम भी संजीदगी से
दुःख दर्द समझ हो पाये
फिर आते रहना मिलने
अपने भी हैं यहाँ पराये
आंसू छिपे रहेंगे तब भी
देखो इनकी खुशियों के साये
हिम्मत भी देख लेना
हम फिर संभाल लाये
साझा हैं हमवतन हैं
ये देवभूमि के सरमाये
1 comment:
हम आपदा के बीच में भी
जीवन के गीत गाते आये
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यह आस्था ही श्मशान से पुनः ज़िन्दगी की ओर ले आती है!
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