बागबाँ की हो शिरक़त चमन में ज्यों
क़ोशिश वतन में सबकी होनी चाहिए
खून से हासिल किया पुरखों ने जिसे
अब सींचना ये गुल वतन तो चाहिए
वतन की आबरू अब भी खतरे में है
नौजवानों को अब तैयार रहना चाहिए
शहादत की न सही आराम की बस
क़ीमत तो कुछ यूँ भी चुकानी चाहिए
कल को कैसा बनाना चाहते हो तुम
आगाज़ की शिद्दत तो दिखानी चाहिए
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