Tuesday, August 13, 2013
दुश्मन क़ौम के
करोड़ों अब भी ग़ुरबत में
सब उन्हीं का नाम लेते हैं
उन्हीं के नाम पर सब ही
अपना ही ईमान खोते हैं
जिन्हें देखो ज़िरह करते
बस आज़ादी नाम लेते हैं
शहर से गाँव तक लेकर
मिलकर भ्रष्टाचार करते हैं
कई नेता बड़े अफ़सर भी
अपनी ही रोटी सेंक लेते हैं
कारिंदे और बिचौलिए भी
अपने भ्रष्टाचार में लिपटे हैं
सियासत की हकीकत से
यूँ अपने ही गुल खिलाते हैं
वतन के रहनुमा बन कर
उसी में बस खेल खेलते हैं
कई रंगों में रंगकर ये सब
वतन को खूब आजमाते हैं
आज़ादी आज़ादख़याली है
इसे सब इस्तेमाल करते हैं
हमारे ही आस-पास हैं रहते
दुश्मन यही सब क़ौम के हैं
हौसले इनके बढ़ते जाते हैं
क्यों कि हम चुप से रहते हैं
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