हसरतें लाख क़ोशिश कर भी दफ़न हैं
हम वो हैं जो ज़िन्दा ही ओढ़े कफ़न हैं
साँस लेते तो हैं पर बड़ी मुश्किल में हैं
ज़मीन न सही खुली हवा में दफ़न हैं
हर कोई ही किसी की ख़ातिर उलझा है
हर ओर गवाही सी देता यहाँ दफ़तन है
बस एक खुदाई क़रिश्मे की तलाश है
ज़िन्दगी जीना भी यहाँ तो औसतन है
जाने हम कितनी दास्ताँ समेटे हुए हैं
कोई और नहीं हम ही अहले वतन हैं
1 comment:
बहुत खूब!
हम वो हैं जो ज़िन्दा ही ओढ़े कफ़न हैं/
so well framed!
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