Saturday, December 13, 2014

मंज़र बदल गया

मनमोहक राग सुन
आनन्दित थे सभी
साथ में सुरीले साज़
बेहतर बना रहे थे
मधुर कंठ से निकले
वाणी के सुरों को
निरन्तर गड़गड़ाते
तालियों के स्वर भी
मानो थमते न थे
अब समां बदला है
स्वर बेसुरे लगते हैं
साज़ नदारद हैं
तालियों की जगह
तिरस्कार के स्वर हैं
सुरों के साथ प्रायः
ताल नहीं मिल पाई
या शायद बदली है
लोगों की मानसिकता
मंज़र बदल गया है

No comments: