आनन्दित थे सभी
साथ में सुरीले साज़
बेहतर बना रहे थे
मधुर कंठ से निकले
वाणी के सुरों को
निरन्तर गड़गड़ाते
तालियों के स्वर भी
मानो थमते न थे
अब समां बदला है
स्वर बेसुरे लगते हैं
साज़ नदारद हैं
तालियों की जगह
तिरस्कार के स्वर हैं
सुरों के साथ प्रायः
ताल नहीं मिल पाई
या शायद बदली है
लोगों की मानसिकता
मंज़र बदल गया है
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