Thursday, December 4, 2014

मूकदर्शक

अजीब बात है !
न जाने कहाँ हैं यहाँ
संवेदनायें लोगों की
जैसे कि गुजरता हूँ
एक पत्थर के शहर में
बहरों की गलियों से
जहाँ की एक प्रथा है
फ़रियाद करने की
सिर्फ़ अपने लिए
वो भी कातर स्वर में
औरों के लिए ये लोग
निभाते हैं परम्परा
मूकदर्शक होने की
या फिर हमेशा
देखी-अनदेखी करने की
बिना इस भान के
कि वे सहभागी बनते हैं
अन्याय, जुर्म, अपराध में
अनजाने में नहीं
बिलकुल जान बूझकर

No comments: