Saturday, December 13, 2014

आँख का चश्मा

तुमने स्वयं किया है
सत्य से परहेज़ शायद
फिर तुम्हारा मनोनय
क्यों न होगा आधारित
असत्य, आंशिक सत्य से
तुम्हारी आँख का चश्मा
तुम्हें भ्रमित करता है
शायद सत्य दिखाई दे
आँख का चश्मा उतार दो
देख लो हर रंग यहाँ
हरा या गुलाबी नहीं है
थोड़ा गहराई से देखो तो
ये सूरज की रौशनी है
जो सब को देती है रंग
सबकी फितरत परख
परावर्तित कर रंग को
वरना सब काला है

No comments: