सत्य से परहेज़ शायद
फिर तुम्हारा मनोनय
क्यों न होगा आधारित
असत्य, आंशिक सत्य से
तुम्हारी आँख का चश्मा
तुम्हें भ्रमित करता है
शायद सत्य दिखाई दे
आँख का चश्मा उतार दो
देख लो हर रंग यहाँ
हरा या गुलाबी नहीं है
थोड़ा गहराई से देखो तो
ये सूरज की रौशनी है
जो सब को देती है रंग
सबकी फितरत परख
परावर्तित कर रंग को
वरना सब काला है
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