हर पल नए दीखते आकाश में
जगा से रहे हैं संसार भर को
पंछी अपनी अपनी बोली में
कुछ खुसर पुसर सी करती हैं
तितलियाँ फूलों के कान में
धूप और बादलों की ठिठोली
क्या लहराती उमंग सागर में
यत्र-तत्र विद्यमान आँखें गढ़ाए
मछुवारे शिकार की तलाश में
एक एक पल का अपना क्रम
सब कुछ चलता एक लय में
प्रकृति के भी नियम हैं अपने
शायद लोग कुछ सीखें इनमें
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