Saturday, December 27, 2014

सब्र बेसब्र है

सब्र का इम्तहान लेती
बेताबियाँ थीं बड़ी कभी
हर चीज की जल्दी बड़ी
भीड़ में बसर थी ज़िन्दगी
वक़्त की नसीहतों के साथ
बस थम सी गई ज़िन्दगी
अब सब्र बेसब्र है अक्सर
सब शांत है अंदर बाहर
जो मिला जैसे भी मिला
अब नहीं कोई गिला
भीड़ का साथ छोड़ अब
तन्हाईयाँ रास आने लगीं
गुमसुम नहीं फिर भी मगर
यूँ मुस्कुराती ज़िन्दगी

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