मन को ना आँखों को भाये
पहले ही से था मन में कुछ
सघन कुहासा सा छाया
अब बाहर मौसम में भी
सुबह-शाम है ऐसा छाया
किरण ज्ञान-चक्षु से मन का
अँधियारा है बना उजियारा
सूर्य-रश्मि से हुआ पराजित
मौसम का अब सारा कोहरा
कुछ मन से कुछ आँखों से
लगने लगा सुखद ये नज़ारा
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