Monday, December 22, 2014

शायद इसीलिए

हरेक को शिक़ायत है
कही समाज व देश से
कभी बेगानों से
कहीँ अपनों से है
थोड़ी रोज़गार की
कई परिवार की
प्रायः सम्बन्धों से
कुछ व्यवस्था से है
नज़दीक से देखूं तो
ऐसे भी लोग कई हैं
जिनको यहाँ खुद से
अपनी ही शिकायत है
इस सब से लगता है
शायद इसीलिए ही
जी रहे हैं लोग क्यों कि
साँस चल रही है!


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