मेरे समक्ष ही वहां उसे
कुछ लोग छेड़ रहे थे
वो अपने रास्ते चलती
बड़ी बेवस लग रही थी
बार बार आँचल संभाल
मानो अपनी विवशता में
गुहार सी लगा रही थी
पास में खड़े लोगों से
मैं भी उनमें शामिल था
मुझे कर्तव्य बोध का
आभास भी हो रहा था
तथापि न मालूम क्यों
मैं कुछ न कर पाया
मैं बस बदहवास खड़ा
देखता ही रह गया था
मेरी ही तरह सभी लोग
मूकदर्शक ही बने रहे
1 comment:
उदय जी!
जानदार प्रस्तुति हेतु आभार। अपनी कमजोरी की पहचान कर लेना बहुत अच्छी बात है।
==========================
याद जगत करता उन्हें, शेष रहें अज्ञात।
करते जो कर्तव्य निज, चलें समय के साथ॥
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
Post a Comment