Saturday, February 12, 2011

मूकदर्शक

मेरे समक्ष ही वहां उसे
कुछ लोग छेड़ रहे थे
वो अपने रास्ते चलती
बड़ी बेवस लग रही थी
बार बार आँचल संभाल
मानो अपनी विवशता में
गुहार सी लगा रही थी
पास में खड़े लोगों से
मैं भी उनमें शामिल था
मुझे कर्तव्य बोध का
आभास भी हो रहा था
तथापि न मालूम क्यों
मैं कुछ न कर पाया
मैं बस बदहवास खड़ा
देखता ही रह गया था
मेरी ही तरह सभी लोग
मूकदर्शक ही बने रहे

1 comment:

डॉ० डंडा लखनवी said...

उदय जी!
जानदार प्रस्तुति हेतु आभार। अपनी कमजोरी की पहचान कर लेना बहुत अच्छी बात है।
==========================
याद जगत करता उन्हें, शेष रहें अज्ञात।
करते जो कर्तव्य निज, चलें समय के साथ॥
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी