उनकी नज्मों को पढ़ लेने से यूँ लगा
हमें तो उल्फत बस कभी हुई ही नहीं
उनकी बेवाकी को देख के यूँ लगा
हमने जुबान ये कभी खोली नहीं
क़ह्क़हों को उनके सुना तो लगा
हम कभी जी भर के हँसे भी नहीं
हसरतें उनकी देख के लगने लगा
हमने तो कभी कुछ चाहा ही नहीं
इश्क के फलसफे उनके पढ़के लगा
हमारी तालीम अभी शुरू ही न हुई
लाख कोशिशों पर उन्होंने क़बूला
ये नज्में ख़ुद पे फ़क़त लागू न हुईं
3 comments:
बहुत खूब उदय जी, हालाँकि कुछ कठिन शब्दों का अर्थ अभी पता करता हूँ, फिर भी मजा ही आ गया ..
बहुत सुन्दर लिखा है उदय जी... वाह ...
@Anil &Nutan: many thanks:)
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