Monday, February 28, 2011

क़ातिलाना

उसी हिजाब के पीछे है आज भी छुपी
मेरी जुस्तजू आज भी खामोश यहाँ
जिसकी सूरत तक मैंने कभी देखी नहीं
माफ़ करना मेरी दुनियां के खैरख्वाहो
मैंने तुम में कभी बन्दगी ही देखी नहीं
जिनकी क़ातिलाना सी लगती हैं नज़र
उनकी आँखों में वो चमक देखी नहीं
आज भी उस सूरत का इंतजार मुझे
जिससे मेरी दोस्ती कभी हुई ही नहीं

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