Monday, February 28, 2011

पत्तियां

पेड़ों पर लगी असंख्य पत्तियां
अब कुछ पीली पड़ने लगी थीं
हवा के झोंके कमज़ोर समझ
उन्हें गिराने में प्रयासरत थे
मेरा उत्साह देख वे अपनी
फीकी हंसी के साथ बोलीं
कब तक यों खिलखिलाओगे
समय की मार की समझ
तुममें अभी नहीं आई शायद
मैंने संजीदा सा उत्तर दिया
समय की मार के डर ने
तुम्हें जीना ही भुला दिया
और तुम पीली पड़ गई हो
समय से पहले ही तुम्हारी
जिजीविषा समाप्तप्राय हुई
मैं समय का सामना करूँगा
तभी जब आवश्यकता होगी

1 comment:

Na said...

very nice, specially the conviction of being able to face difficulty as in 'samay' as and when it arises..