रात घुप्प अँधेरी है आज
चाँदनी भी तो नहीं है
ये तो अमावस की रात है
कौन फैला रहा है फिर
ये उजाला मेरे आस पास
कहीं ये मेरा भ्रम तो नहीं
कोई मधुर स्वप्न तो नहीं
लेकिन मैं तो जगा हुआ हूँ
ये मध्यम सी रौशनी मुझे
कौतुहल में डाल रही है
ये संगीत की ध्वनि कैसी
तारों के प्रकाश तो कभी
इतने करीब न देखे थे
कोई मायाजाल तो नहीं?
सोचता हूँ कि ये शायद
मेरे अन्दर का प्रकाश होगा
तो क्या मैं झाँक रहा हूँ
देदीप्यमान होती हुई
अपने ही अन्दर की ऊर्जा?
4 comments:
गहन अभिव्यक्ति!
अच्छी सोच। अच्छी प्रस्तुति।
बहुत सुन्दर भाव ...अपने अंदर की उर्जा से यदि रोशनी मिल रही हो तो सब उजला ही लगेगा ...
बहुत गहन सोच से परिपूर्ण सुन्दर अभिव्यक्ति..
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