वो बिसरी सी बातों एवं यादें मेरी
आज भी कभी दिलासा दे जाती हैं
जो मेरी परिकल्पना की उड़ान थे
सच न सही तदपि परछाई तो हैं
वो सब अनूठे जीवन प्रसंग मेरे
जो मेरे जीवन का अभिन्न अंग हैं
गाहे बगाहे सही पर अक्सर ही
मुझे वो मंज़र अब भी बुलाते हैं
कितनी ज़ल्द वक़्त निक़ल गया
वो इस सब का आभास करते हैं
बस छोटी सी इस लम्बी यात्रा में
मेरे हमसफ़र बन साथ निभाते हैं
1 comment:
बहुत सुन्दर रचना .. उम्दा..
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