Sunday, February 20, 2011

कमी

कमी
उसने हमें फिर ताने दिए
उसी ने तिरस्कार किया
उसी की नज़र में फिर
एक बार गुनहगार हुई
उसके जेहन में जो था, वो
मेरी फितरत में नहीं था
फिर भी उसकी नज़र में
मैं उसकी गुनहगार थी
उसका अपना सवाल था
मेरा कोई ज़वाब न था
वो अपनी तरह सोचता था
मेरी अपनी ही समझ थी
उसको सवालों का हक था
मैं अपने उसूलों में बंधी थी
दोनों ही अपनी जगह ठीक थे
मगर दोनों में ही कमी थी

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