फिर घिर आयेंगे बादल
धरती का ताप घटाने
बरसेंगी फिर घटायें
तन मन भिगो देंगी
फिर अँधेरे को चीरता
बढ़ चलेगा भुवन रथ
अँधेरी रात के बाद
उज़ला प्रभात होगा
सूर्य की चमक के साथ
फिर दमकेगा जगत
नई आशाएं फिर होंगी
नई सी उमंगों के साथ
मैं भी प्रतीक्षा करूँगा
हर उस नई रीत की
जो मिटा न भी सके
तो दूर अवश्य कर दे
किसी के मन की टीस
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