Sunday, June 12, 2011

इम्तहान

कहीं दूर का सा होता है अंदेशा
किसी ने जो भेजा है संदेशा
ये आसमान इतनी दूर क्यों है
मुझमें पंछी से पर क्यों नहीं हैं
चलते चलते भी थक गया हूँ
ये मंजिल इतनी दूर क्यों है
हर तल्ख़ी से होता है अहसास
ये मेरा कोई इम्तहान सा क्यों है
कुछ बस्तियां वीरान चमन सी हैं
शायद बहारों के इंतज़ार में हैं
मैं भी बस इंतज़ार ही करूंगा
हर इम्तहान में खरा उतरूंगा

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