Thursday, June 23, 2011

दावेदार

साँस को साँस से ही है दुराव अब
बूँद को भी बूँद से होता गुरेज़ अब
आशियानों में बिखरते हैं लोग अब
बदलते जो न बदले कभी थे लोग अब
चांदनी को चाँद से शिकायत हो गई
रौशनी भी सूरज को पाती उष्ण अब
नागरिक राष्ट्र से हो गए नाराज़ अब
राजनीतिज्ञ हैं खफा जनता से अब
पुत्र-पुत्रियों को भी है गिला माँ-बाप से
पति व पत्नी उभय पक्ष में हैं दरारें अब
मांगते सब हक़ हैं दावेदार बन आज सब
सिर्फ लेना सिफ़र देना है बना रिवाज़ अब

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