ये ज़िन्दगी जब तक है
मुसाफिर भी खूब होंगे
नित नए कारवाँ भी होंगे
ख़ुदी को तलाशते हुए से
हम ख़ुद पर ही यहाँ
हम हर रोज़ हँस लेंगे
लोगों की फितरत पर
कभी अपनी हसरत पर
कभी और कुछ नहीं तो
ज़माने पर ही हँस लेंगे
ख़ुद की कथनी-करनी के
बीच की दूरी पर हँस लेंगे
फिर भी तलाश जारी रहेगी
चाही-अनचाही अपनी व गैरों की
जब तक तुम और हम होंगे
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