Thursday, June 16, 2011

पारिश्रमिक

कभी हमें भी मिल गया
किसी मोड़ पर तो हम
अपने मुक़द्दर से ये पूछेंगे
और क्या-क्या दिखलाओगे
कितना मुझे भरमाओगे
कहाँ-कहाँ यों भटकाओगे
फिर लगता है हर्ज़ क्या है
जो मिला वही मुक़द्दर!
मरीचिका क्योंकर देखें
यों भी मुक़द्दर का लिखा
पहले कब किसी ने देखा
हमें कुछ नहीं लेना उनसे
कयास लगाने वालों अथवा
पारिश्रमिक को श्रम करते

1 comment:

अनुभूति said...

बहुत सुन्दर रचना ....शुभ कामनाएं...सादर..