वो तनहाइयाँ जो मुझे सताने सी लग गई थीं
ग़ज़ल और रुबाइयों का सबब बनने लगी थीं
शब्द जब अपनी खुसूसियत जतलाने लगे थे
ग़म के बीच भी शहनाइयाँ सी बजने लगी थीं
जो उदासी मेरी रुबाइयों में झलकने लगी थी
वही अब वसंत के गीत भी गुनगुनाने लगी हैं
जिन खुशियों को मैंने खुद से दूर ही सोचा था
वो अक़सर मेरे आस पास आने जाने लगी हैं
ज़िन्दगी की कई हकीक़तें जो अनजानी थीं
वही अब मुझे गीत सी समझ में आने लगी हैं
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