सब उनके दिन बने रात और रातें बनी दिन थीं
चाह तो आसमाँ की थी पर कोशिशें कुछ कम थीं
उन्हें अपनी ज़िन्दगी की हो रही थी कशमकश
बेपरवाह पहले ही थे अब लापरवाह और हो गए
होश आया जो वक़्त रहते उन्हें फिर आखिरकार
ज़िन्दगी के लम्हे अब गुल-ओ-गुलज़ार हो गए
खिदमत की थी चाहत उनको हरएक से बेवजह
बदले बदले से अब बड़े खिदमतगार थे हो गए
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