Saturday, February 18, 2012

आसमाँ

सब उनके दिन बने रात और रातें बनी दिन थीं
चाह तो आसमाँ की थी पर कोशिशें कुछ कम थीं
उन्हें अपनी ज़िन्दगी की हो रही थी कशमकश
बेपरवाह पहले ही थे अब लापरवाह और हो गए
होश आया जो वक़्त रहते उन्हें फिर आखिरकार
ज़िन्दगी के लम्हे अब गुल-ओ-गुलज़ार हो गए
खिदमत की थी चाहत उनको हरएक से बेवजह
बदले बदले से अब बड़े खिदमतगार थे हो गए

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