चलो आज हकीकत पर उतर आयें
किसी सूखे दरिया को पानी पिलायें
किसी पर्वत को शिखर का भान करायें
किसी और के नज़रिए से नज़र उठायें
किसी पंछी को कहें और पँख फैलायें
छोटी सी दुनियाँ की विशालता देख आयें
किसी बड़े सागर को थाह बता आयें
किसी को ख़ुद रूठने का कारण बतायें
उखड़ती साँसों में ज़िन्दगी तलाश आयें
किसी मुस्कुराते को तसल्ली दिलायें
अपने ही से मिले दर्द में अब मुस्कुराएँ
2 comments:
किसी मुस्कुराते को तसल्ली दिलायें
अपने ही से मिले दर्द में अब मुस्कुराएँ /
waah
"किसी मुस्कुराते को तसल्ली दिलायें
अपने ही से मिले दर्द में अब मुस्कुराएँ"
सुन्दर रचना ..गहरे भाव.
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