Saturday, February 25, 2012

हकीकत

चलो आज हकीकत पर उतर आयें
किसी सूखे दरिया को पानी पिलायें
किसी पर्वत को शिखर का भान करायें
किसी और के नज़रिए से नज़र उठायें
किसी पंछी को कहें और पँख फैलायें
छोटी सी दुनियाँ की विशालता देख आयें
किसी बड़े सागर को थाह बता आयें
किसी को ख़ुद रूठने का कारण बतायें
उखड़ती साँसों में ज़िन्दगी तलाश आयें
किसी मुस्कुराते को तसल्ली दिलायें
अपने ही से मिले दर्द में अब मुस्कुराएँ

2 comments:

babanpandey said...

किसी मुस्कुराते को तसल्ली दिलायें
अपने ही से मिले दर्द में अब मुस्कुराएँ /
waah

Kewal Joshi said...

"किसी मुस्कुराते को तसल्ली दिलायें
अपने ही से मिले दर्द में अब मुस्कुराएँ"

सुन्दर रचना ..गहरे भाव.