Friday, February 10, 2012

सपने से पल

किसी ओर या किसी भी छोर में हो
कहीं न कहीं तो मिलेंगे वो पल मेरे
मैं आज भी तलाश रहा हूँ लम्हों को
खोई हुई उम्मीद में बसे हैं सपने मेरे
मैं बार बार मिलना चाहता हूँ उनको
चाहे कितना मुझसे रूठे हों अपने मेरे
मुझे गुमान नहीं किसी भी चाहत का
बस छोटे छोटे से ही हैं ये सपने मेरे
कल नहीं पर आज या कल ही सही
ढूंढ़ ही लूँगा मैं वो सपने से पल मेरे

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