Wednesday, February 8, 2012

अक़सर

उनके पास मेरे इम्तहान के तरीक़े अभी बाक़ी हैं
मुझ में अभी मेरे वजूद के भी चन्द सवाल हावी हैं
वो हमेशा अपनी ही नज़र से मुझे देखना चाहते हैं
मेरे तौर तरीक़े उनके तरीक़ों से कुछ अलग से हैं
लेकिन एक बात हम में ज़रूर मिलती जुलती है
वो मुझे और हम उन्हें अजीब ओ गरीब लगते हैं
हाँ एक और बात भी बड़ी अच्छी है हम दोनों में
हम फिर भी दोनों अक़सर मिलते जुलते रहते हैं

1 comment:

India Darpan said...

बेहतरीन भाव पूर्ण सार्थक रचना.....
खबरनामा की ओर से आभार