ये दूरियाँ तो कम न कर सकूँ
बस मन से मिला रही हूँ तुम्हें
हमेशा की भाँति वसंत बहार है
कितना याद कर रही हूँ मैं तुम्हें
मेरे भेजे नव वसंत के चित्रों में
दर्शन हुए होंगे वसंत के तुम्हें
अब ये वसंत सुरभि कैसे भेजूं
इन चित्रों के माध्यम से तुम्हें
तुम्हारे शहर में भी वसंत होगा
पर फुर्सत कहाँ होगी तहाँ तुम्हें
तुम्हारे लैपटॉप पर सब होगा
पर मिलता शायद ही होगा तुम्हें
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