Friday, September 28, 2012

बिसात

तुम्हारे अल्फाज़ जब नापसंद किये हमने
कोई शिक़ायत न कभी शिकवा किया हमने
हँसते हँसते सहे तुम्हारे सब वार थे हमने
न जाने कितनी नसीहतें हर रोज़ दी हमने
सोच बदलेगा ये तुम्हारा मिजाज़ था हमने
बहुत बर्दाश्त किया तुम्हारे दाँव को हमने
रोज़ नज़रंदाज़ कर किया माफ़ था हमने
लो बिछा दी है ज़िन्दगी की बिसात हमने
अब दो चार हाथ खेलने की ठान ली हमने

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