Saturday, September 22, 2012

अन्ततोगत्वा

व्यक्ति की बुनियादी आवश्यकता है
रहने को घर चन्द चाहने वाले लोग
दो वक़्त की रोटी और चैन की नींद
आकांक्षाएं फिर आगे बढ़ने लगती हैं
पहले धन-धान्य फिर कुछ सम्मान
फिर नाम उसके बाद यश प्राप्ति भी
समझदार यहाँ सिंहावलोकन कर
समाज को वापस भी करने लगते हैं
आत्मसम्मान से लबरेज़ जीवन में
उनकी प्रशस्ति नए आयाम दिखाती
मूर्खों की पिपाशा और बढ़ती जाती है
अनैतिक कार्य और अनैतिक धन
उनका अपना मार्ग ही बन जाता है
किन्तु सब कुछ एक क्रम सा भी है
मूर्ख बस चिंता और असुरक्षा पाते हैं
लोगों में ईर्ष्या के पात्र बन जाते हैं
अपने कर्मफल स्वरुप ही उनका
जीवन भी कष्टकर होता ही जाता हैं
रोगग्रस्त हो जब उन्हें अहसास हो
समय चक्र में बस देर हो जाती है
पश्चाताप हेतु अवसर नहीं मिलता
एकाकी जीवन में क्षोभ ही बस!
अन्ततोगत्वा सब कुछ यहीं रहेगा
धन, लाभ, प्रेम आदि सब कुछ ही
सम्मान और यश ही याद रहता है

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