Sunday, September 9, 2012

तसल्ली को तसल्ली


गुज़ारिश तो बड़ी की थी मैंने भी यहाँ
जो क़िस्मत में नहीं उसका गम कैसा
है बड़ी उम्मीद अब भी मुझको ख़ुद से
हूँ अकेला ही मैं बस यहाँ मुझ जैसा
अकेलापन मुझ पर हावी नहीं न कभी
हवा का हर झोंका है मेरा पहचाना सा
इंतजार के इन लम्बे पलों में मानो
हर एक ज़र्रा है मुझे तस्सली देता सा
कभी तक़दीर कभी तदवीर के सवाल
बड़ी तसल्ली से मैं हर ज़वाब देता सा
मेरे हिस्से में जो भी आया वही मेरा
तसल्ली को भी मैं तसल्ली देता सा

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