Friday, December 2, 2011

ग़लत

बात तब भी बस वहीँ थी
आज भी वहीँ अटक गई
बिना जाने सुने ही तुमने
सोचा ज्यों सब समझ गई
तुम न भी चाहो बूझना
इस अनबूझी पहेली को
हमारे ये ज़ज्बात ज़रूर
तुम्हें आभास तो कराएँगे
हम अपनी जगह सही थे
तुम्हारी समझ अलग थी
तुम्हारी सोच ग़लत थी

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