Friday, December 9, 2011

इतिहास

कहने को बहुत कुछ है मेरे पास
पर सुनने को नहीं है कोई पास
जब थे लोग कभी सुनने वाले भी
कहने को कुछ नहीं था मेरे पास
अब बस इन्तजार उस दिन का
कहा सुनने वाले होंगे कभी पास
मैं भी कोशिश करूँगा सुनने की
अगर कहने को है तुम्हारे पास
वक़्त निक़ल गया कुछ गम नहीं
ज़िन्दगी है ये नहीं कोई इतिहास
जो चाहा वो मिला हो या न सही
यहाँ हर किसी की है एक आस

1 comment:

त्रिलोक चन्द्र जोशी 'विषधर' said...

Main ek dhun hun mujh main sab samaye hai;
mene hajaron khuniya lakhon gam gale lagaye hai;
mere garbh main haas parihaas sab kuchh tumen mil jayega;
nahin melega bus isme mera apana itihas;
main sadiyon se bhatak raha bankar yayavar;
janane ke liye apne ko ;
mere saamne koi nahin sunane ko mera atit mera itihaas;