कितनी धूल सी उड़ रही थी
वातावरण दूषित करती थी
उस रोज़ मिलकर दोनों ही
धूसरित करती मेरे आँगन
फिर किसी नवजात की
बिलखती किलकारी सी
वर्षा की बूँदें आ गई थीं
अकस्मात् ही मेरे आँगन
सब कुछ धुला धुला सा
सब घर द्वार व पेड़ पौधे
नए लगने लगे मेरे आँगन
मेरे अंतर्मन में भी शायद
किसी बूँदों की फुहार से
सब नया व ताज़ा लगेगा
एक रोज़ मेरे मन आँगन
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