Saturday, December 17, 2011

मेरे आँगन

कितनी धूल सी उड़ रही थी
वातावरण दूषित करती थी
उस रोज़ मिलकर दोनों ही
धूसरित करती मेरे आँगन
फिर किसी नवजात की
बिलखती किलकारी सी
वर्षा की बूँदें आ गई थीं
अकस्मात् ही मेरे आँगन
सब कुछ धुला धुला सा
सब घर द्वार व पेड़ पौधे
नए लगने लगे मेरे आँगन
मेरे अंतर्मन में भी शायद
किसी बूँदों की फुहार से
सब नया व ताज़ा लगेगा
एक रोज़ मेरे मन आँगन

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