Saturday, December 17, 2011

शीशे सा दिल/hearts of glass

शीशे सा दिल अगर वाकई जो होता शीशे का
उसके आर पार दिखाई देना लाजमी न होता?
बचपन का सा प्यार अगर फिर से कभी होता
कुछ पाने का अंदाज़ ओ ख़याल अलग होता
If the hearts were actually made of glasses
They would be transparent to see through
If love of childhood days could come back
Considerations in thoughts would change!

2 comments:

S.N SHUKLA said...

सुंदर रचना........बधाई हो
मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है |

प्रेम सरोवर said...

आपका पोस्ट अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट "खुशवंत सिंह" पर आपकी प्रतिक्रियायों की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी । धन्यवाद ।