वक़्त की तो हमसे हो चुकी है दोस्ती
वक़्त का क्या वो तो कट ही जायेगा
अब वो हमसे अक्सर पूछता रहता है
ज़माना अब कितनी तरक्की करेगा
ये पुरानी बातें अब सब मिट जाएँगी
या इनका एहसास भर ही रह जायगा
क्या कह सकते ही इत्मीनान से तुम
कि ये सब कुछ तुम्हारे बाद भी रहेगा
रोज़ की तरह ही नई राह चल दिए हो
ये नया रास्ता न जाने किधर जायेगा
हमने कह दिया वक़्त को बेवाकी से
तुम्हारे भरोसे ही सब चलता जायेगा
No comments:
Post a Comment