Sunday, December 4, 2011

सुलह

तुम्हारे न चाहते भी हर बार की तरह
अपना मत प्रकट कर दिया था हमने
ज़रा दूसरे के नज़रिए से भी देख लो
अपना हक समझ कर कहा था हमने
बस एक बात ही सही कहा मान लो
हमारे हालत से सोचो कहा था हमने
क्यों हो गए थे इतने बेचैन अचानक
ऐसा भी क्या कुछ मांग लिया हमने
तुम ज़माने भर के तनाव ले आये
जिन्हें जाने कितनी बार देखा हमने
हमें तो लगा था फिर भी बिलकुल
सुलह पर अहसान किया था हमने

1 comment:

S.N SHUKLA said...

सुन्दर शब्दावली, सुन्दर अभिव्यक्ति.

कृपया मेरी नवीन प्रस्तुतियों पर पधारने का निमंत्रण स्वीकार करें.