Friday, December 9, 2011

वर्तमान

ज़िन्दगी की बातें निराली हैं
जो है वही बस कम लगता है
वर्तमान में विगत की छाया में
मन अक्सर भटकता रहता है
वक़्त आगे ज़रूर बढ़ जाता है
पर विगत में झांकता रहता है
तब और में कई फर्क का बोध
अक्सर यहाँ कराता रहता है
फिर भी विगत सिर्फ याद है
वर्तमान ही तो अब सत्य है

1 comment:

Roshi said...

जीवन नाम है यथार्थ के धरातल का या फिर विगत की परछाईयो का,

इसी सोच में समय रेत की तरह हाथ से फिसल जाता है और ये क्षणभंगुर सा जीवन समाप्त हो जाता है ... :) :)