ख़ुशनुमा अंदाज़ में ज़िन्दगी तब यूँ चल रही थी
मानो शहर भी की ख़ुशी मेरी झोली में आ गई थी
फिर अचानक वक़्त ने उधर करवट बदल ली थी
परेशानी के वक़्त कुछ बात समझ न आती थी
उस दिन लगा कि मानो ज़िन्दगी ही थम गई थी
फिर पता भी नहीं चला कब वो आगे बढ़ गई थी
परेशानियाँ आईं तो ज़रूर मगर निक़ल गई थीं
वक़्त के साथ घावों पर मरहम भी लगा चुकी थीं
परेशानी भी अब सफ़र की ही साथी लगती थी
ख़ुशी भी इन्हीं की पीठ पर सवार सी लगती थी
1 comment:
khatti mitthi jindagi.na khushi ke kilkari kaa jazba rahe, na guum ke aah lage, aise hoe jindagi,aisee hou jindagii...
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