Tuesday, December 27, 2011

पराकाष्ठा

समय और जीवन दोनों ही
अपरिहार्य और गतिमान हैं
दोनों की भविष्यवाणी करना
हमारी क्रियाक्षमता से बाहर है
अपरिमित और असाध्य को
मापने का प्रयास भर ही है
इनकी विवेचना व सम्भावना
अनुमान लगाना मात्र ही है
इनके गतिशीलता के आयाम
इन्हीं के बस अपने से ही हैं
इन्हें वश में करने के प्रयास
अवश्यमेव बेमानी से ही हैं
इनकी पराकाष्ठा भी केवल
इन्हीं के तर्क पर चलती है

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