Friday, March 2, 2012

गुनहगार

आँखों से हटा के देखो सभी चश्मे तुम अपने
नज़र के धोखे से तुम्हें बचाना चाहता हूँ मैं
तुम्हें यकीन नहीं न सही पर हकीकत है ये
जो हूँ वो दिखता कम पर हाँ यही तो हूँ मैं
मेरे सपने हो न हो शायद मेरे अपने ही सही
बस तेरी ही तरह किसी का ख्वाबगाह हूँ मैं
कभी तेरा कभी अपना कभी और का हूँ मैं
जाने अनज़ाने हम सभी का गुनहगार हूँ मैं
मुझे किनारों मैं रहने का नहीं है कोई शौक़
अपने ही लिए जीवन का ख़ुद मझधार हूँ मैं

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