Saturday, March 17, 2012

भूल

अपनी ही कहानी कहते कहते
हम अपने आप को ही भूल गए
तुम्हें ये कहानी सुनाते सुनाते
हम तुमको इधर बस भूल गए
जाने किस किस याद में हम
दिल का तराना तक भूल गए
साथ साथ चलते रहकर भी हम
दो कदम साथ चलने भूल गए
सावन में भी बरसात का पता
जेठ की दुपहरी धूप भूल गए
रेत में डाले पानी की तरह हम
पानी की निशानी तक भूल गए
अब बची ही क्या थी उम्र हमारी
इसीलिए हम ज़माना ही भूल गए

4 comments:

चंदन said...

बहुत सुन्दर रचना|

Reena Pant said...

सुंदर अभिव्यक्ति

poonam said...

sunder bahv

Kewal Joshi said...

हम ज़माना ही भूल गए....वाह !