अपनी ही कहानी कहते कहते
हम अपने आप को ही भूल गए
तुम्हें ये कहानी सुनाते सुनाते
हम तुमको इधर बस भूल गए
जाने किस किस याद में हम
दिल का तराना तक भूल गए
साथ साथ चलते रहकर भी हम
दो कदम साथ चलने भूल गए
सावन में भी बरसात का पता
जेठ की दुपहरी धूप भूल गए
रेत में डाले पानी की तरह हम
पानी की निशानी तक भूल गए
अब बची ही क्या थी उम्र हमारी
इसीलिए हम ज़माना ही भूल गए
4 comments:
बहुत सुन्दर रचना|
सुंदर अभिव्यक्ति
sunder bahv
हम ज़माना ही भूल गए....वाह !
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