आज मैं श्याम संग खेलूं न होरी
कौन संग रचाए रास है श्यामा
जाने कहाँ कहाँ खेले वह होरी
है वृन्दावन कभी मथुरा नगरी
कभी है गोकुल की राधा गोरी
आज मैं श्याम संग खेलूं न होरी
अब मैं न लजाऊँ न शरमाऊँ
मैं रखूंगी अब मोरी चुनरी कोरी
घर से न जाने की सोच रही थी
आके श्याम बस मारी पिचकारी
कैसे न खेलूं मैं श्याम संग होरी
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